May 27, 2007

शायर: फानी / हरिचंद अख़्तर

हर नफस उमरे-गुजश्ता की है मय्यत फानी,
सांस / बीती उम्र / कब्र
जिंदगी नाम है मर मर के जिए जाने का

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शबाब आया किसी बुत पर फ़िदा होने का वक़्त आया
मेरी दुनियां में बन्दे के खुदा होने का वक़्त आया


तकल्लुम के खामोशी कह रही है हर्फे-मतलब से
बातचीत / शब्दों के अर्थ
कि अश्क-आमेज़ नजरों से अदा होने का वक़्त आया
आंसू भरी

हमें भी आ पड़ा है दोस्तों से काम कुछ यानी
हमारे दोस्तों के बेवफा होने का वक़्त आया
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